बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

मेरी प्यारी माँ [ गीत ]

 460/2024

              


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जननी मेरी पहली गुरुवर

धरती की माँ धैर्य अनूप।


माँ की समता ऐसी ममता

और कहाँ जग में पाऊँ।

सूखी कथरी मुझे सुलाया

वत्सलता पर बलि जाऊँ।।


सदा भावना   यही   सँजोए

लगे न किंचित सुत को धूप।


स्वयं अभावों में  रह लेती

किंतु नहीं कोताही की।

दूध पिलाकर अपने तन का

प्रियता भरी सुराही  भी।।


जन्म - जन्म  में उपकारों का

बदला चुका न सके स्वरूप।


जगती में भगवान कहीं यदि

तो प्यारी   जननी  भगवान।

जननी जनक समान नहीं हैं

और   नहीं   कोई   इंसान।।


जब तक जन्म मिले  धरती पर

मिले 'शुभम्' को माँ भव - कूप।


शुभमस्तु !


08.10.2024● 11.00आ०मा०

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