480/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
शुभ कर्मों से ही सदा, होता ऊँचा भाल।
वायस बैठे मैल पर, पीता दुग्ध मराल।।
बोलें वाणी सत्य ही,भले न शहद समान,
पाटल-सी मुख-छवि रहे,रहें टमाटर गाल।
करें खोखला देश को, करें न कोई काम,
रहुआ रोटीतोड़ जो,बिछा रहे नित जाल।
बिना लिए उत्कोच के,सफल न होता काम,
भ्रष्टाचार प्रधान है, विकृति विकट छिनाल।
सत्ता के सब लालची, आए किसी प्रकार,
ठोक रहे मैदान में, निज जंघा पर ताल।
नैतिकता यमलोक को, पहले गई सिधार,
चुसता है बस आम ही,खास सदा ही लाल।
'शुभम्' न चिंता देश की, नेताओं को लेश,
चलें वक्र निज गेह में,चलकर चाल कुचाल।
शुभमस्तु !
20.10.2024●10.00प०मा०
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