बुधवार, 12 नवंबर 2025

सुख की चाहत [ अतुकांतिका ]

 671/2025



            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


 चाहना मात्र

 किसी और का

कि वह सुखी हो :

इतना सहज भी नहीं

क्योंकि आदमी

सबसे पहले

और सबसे अधिक

स्वयं सुखी होना चाहता है।


कैसे बदले 

वह अपना स्वभाव

सर्प  और  वृश्चिक को

पर-दंशन में ही

परम सुख सुलभ है,

रोता-बिलखता हुआ

दंशित पात्र 

उसके सुख का कारण है।


जीवन की दौड़ में

जहाँ  टंगड़ी मार कर

अन्य को

गिराना ही लक्ष्य हो

आदमी ही 

आदमी का भक्ष्य हो,

वहाँ पर सुखार्थी की

आशा व्यर्थ है।


अपनी नाक कटे

तो कट जाए

पर दूसरे का

शगुन बिगड़ जाए

वहाँ इस मनुजात से

क्या उम्मीद रखी जाए!


प्रसन्न हैं लोग

दूसरे को दुखी देखकर,

यही उनके

 सुखी होने का

एक सुलभ कारण है,

सबसे सस्ता 

और अपना

हर्रा लगे न फिटकरी

सुख और अधिक गहराए !


इस प्रकार के

इस इंसान को

क्या कहा जाए ,

और क्या न कहा जाए!

सब सुखी हों

इस प्रकार की चाहत का

दिखता नहीं उपाय।


शुभमस्तु !


10.11.2025●9.30आ०मा०

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