बुधवार, 12 नवंबर 2025

मात -पिता सर्वस्व हैं [ ]

 670/2025


      


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

 

मात -पिता गुरुजन सभी ,सबसे ज्येष्ठ पुराण।

मर्त्यलोक   में    कौन   है,  इनसे श्रेष्ठ प्रमाण।।


सेवा  जननी-जनक   की, सर्व धर्म  का  सार,

न हो अगर विश्वास  तो,कस कर देखो  शाण।


मात - पिता  की  छाँव में, संतति पलती  नित्य,

वही   नेह   निस्वार्थ   हैं, करें   प्राण का त्राण।


वचन   कभी   बोलें नहीं, करे  हृदय को पार,

चुभ जाए  जो  मर्म  में, असहनीय वह बाण।


करें नहीं  अवहेलना,   मात-पिता  की बात,

वे ही छत  दीवार भी, सकल  विश्व निर्वाण।


मात -पिता  अनमोल  हैं,चुके न उनका मोल,

पता  लगे महिमा  तभी,हो जब प्राण प्रयाण।


'शुभम्' नहीं मन में भरें, क्षण भर को भी खोट,

मात-पिता सर्वस्व   हैं,   बनना    मत पाषाण।


शुभमस्तु !


10.11.2025 ●12.45 आ०मा०

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