बुधवार, 26 नवंबर 2025

चंचल चपल चुलबुला बचपन [ गीतिका ]

 687/2025


      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चंचल    चपल   चुलबुला   बचपन।

दिखलाता   है    कितने    ठनगन।।


खेल    खेलना      लगता     उत्तम,

बचपन  से    जीवन    हो  शोभन।


अम्मा    दादी      लाड़       लड़ाएँ,

बाबा   कहें     पौत्र     जीवन-धन।


गिल्ली -डंडा      गेंद         कबड्डी,

कभी   बनाते   किरकिट  के   रन।


गली-गली    में     धूम       मचाते,

बाग-बगीचा       घूमें       वन-वन। 


कहें      पिताजी  पढ़     लो    बेटे,

पढ़ने  में  पर     लगे     नहीं    मन।


'शुभम्'  सुनहरे    दिन   जीवन के,

चकरी-सा    फिरता  है   घन -घन।


शुभमस्तु !


24.11.2025●7.30 आ०मा०

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