शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

केसरिया धूप [ नवगीत ]

 698/2025


            


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


फुनगी पर

बैठी है

केसरिया धूप।


कुम्हलाए दिन

अगहन के

अनभाई रात

हिम कन-सी

जमती है

प्रीतम की बात

बदले हैं

दिनकर भी

भभराया रूप।


नीड़ों में

खग शावक

करते हैं शोर

मेड़ों के 

पीछे कुछ

नृत्य करें मोर

देख लिया

छिप-छिप कर

लगा गए चूप।


अरहर को

पाले की

पड़ती जो थाप

थर -थर कर

कंपित है

याद आए   बाप

भाप उठी

अंबर में

जागे हैं कूप।


शुभमस्तु !


28.11.2025●1.45 प०मा०

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