660/2025
समांत : आरे
पदांत :अपदांत
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
करता है जो बिना विचारे।
पछताता निज हिम्मत हारे।।
श्रम से स्वेद-सिक्त नर रहता।
उसने ही निज भाग्य सुधारे।।
परजीवी का जीवन क्या है।
अपने काज न कभी सँवारे।।
अथक कर्म विश्वास जगाता।
जय-जय का जयकार उचारे।।
साहस से सीमा पर लड़ता।
अनगिनती अरि जन को मारे।।
कूप खोद नित पिता जल को।
कहता नहीं नीर कण खारे।।
'शुभम्' काज मन से निपटाता।
जय किरीट वह सिर पर धारे।।
शुभमस्तु !
03.11.2025●5.00 आ०मा०
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