शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

भुने महकते आलू [ नवगीत ]

 693/2025


        


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


साग चने का

सरसों -भुजिया

भुने महकते आलू।


पौष माघ की

शीत सिहाती

कट-कट बजते दाँत

घृत से सनी

बाजरा रोटी

माँग रही है आँत

अगियाने के पास

सो रहा

अपना प्यारा कालू।


शकरकंद की

सौंधी ख़ुशबू

नथुनों को फड़काए

गज़क रेवड़ी

मूँगफली के

स्वाद जीभ ललचाए

कोल्हू पर चख

गर्म-गर्म गुड़

चिपक गया है तालू।


उधर गली में

लगी डिमकने

ढम-ढम की आवाज

जुड़ने लगी 

भीड़ भी भारी

आया है नव साज

लगता  कोई

नेक मदारी

नचा रहा  है  भालू।


शुभमस्तु !


27.11.2025●12.30प०मा०

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