बुधवार, 12 नवंबर 2025

जीवन एक उपन्यास [ अतुकांतिका ]

 672/2025


       


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


टुकड़े -टुकड़े

जिंदगी को जोड़कर

बहुत सारी कहानियाँ

बनती हैं,

उन्हीं कहानियों में खोजें

एकसूत्रता

क्रमबद्धता 

लय बद्धता 

तो एक उपन्यास

बन जाता है।


जितने जीवन

उतने उपन्यास

एक से एक खास,

आप ही नायक

आप ही खलनायक,

पर दोष दूसरों में देखना

आदमी का स्वभाव है।


उसकी जानकारी में 

वह कभी गलत नहीं होता,

अन्य सभी गलत हैं,

यह सोच भी

उसका स्थायी भाव है 

स्व दोष स्वीकारने का

सर्वथा अभाव है।


आदमी एक 

अबूझ पहेली है,

न कोई इसे

समझा सका

न समझा सकता है,

सबकी समझ से बाहर

हर आदमी 

अपनी गली में नाहर।


जितना समझा गया

उतना उलझता गया

भूलभुलैया ही

भूलभुलैया

जिंदगी भर 

नाचता रहा 

ता ता थैया 

ता ता थैया,

एक अंतहीन उपन्यास।


शुभमस्तु !


10.11.2025●10.00 आ०मा०

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