सोमवार, 3 नवंबर 2025

करता है जो बिना विचारे [ गीतिका ]

 661/2025


  


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


करता   है   जो      बिना     विचारे।

पछताता    निज      हिम्मत   हारे।।


श्रम    से    स्वेद-सिक्त   नर रहता,

उसने  ही    निज    भाग्य   सुधारे।


परजीवी      का    जीवन   क्या  है,

अपने  काज   न    कभी   सँवारे।


अथक  कर्म      विश्वास   जगाता,

जय-जय    का    जयकार  उचारे।


साहस  से      सीमा     पर  लड़ता,

अनगिनती  अरि  जन   को  मारे।


कूप  खोद  नित  पिता   जल  को,

कहता   नहीं     नीर  कण   खारे।


'शुभम्'   काज  मन से   निपटाता,

जय किरीट   वह   सिर  पर धारे।


शुभमस्तु !


03.11.2025● 5.00 आ०मा०

                      ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...