बुधवार, 26 नवंबर 2025

जीवन [ कुंडलिया ]

 685/2025

     

                  


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

नर  जीवन  अनमोल   है, जो  न समझता मोल।

मानव   तन   के   खोल   में,रहे  ढोल  का ढोल ।।

रहे   ढोल   का   ढोल,   बजाती  उसको दुनिया।

चपटी है   या   गोल,  धरणि    नापे   ले गुनिया।।

'शुभम्'    सदा    बदहाल,   उधेड़ी  रहती सीवन।

फँसे मत्स्य  ज्यों  जाल, वही  है  वह  नर  जीवन।।


                         -2-

चौरासी     लख     योनियाँ, उनमें मानव    एक।

चर  जीवों   में    नारि- नर,   रखते मात्र विवेक।।

रखते    मात्र      विवेक,  नहीं   गर्दभ  या  घोड़ा।

गज   वानर   या   भैंस, ज्ञान   रखते   हैं   थोड़ा।।

'शुभम्'   करे    अविवेक,  देख    लें  बारहमासी।

नर   जीवन ज्यों भेक, नहीं सुख   लख  चौरासी।।


                         -3-

मानव    जीवन    में   कभी,  करना नहीं  गुरूर।

वरना    होगा    एक   दिन,  गर्व  तुम्हारा   चूर।।

गर्व    तुम्हारा     चूर,   महल   ढह जाँय हवाई।

काल    गहे    भरपूर,   भले  हो   लोग -लुगाई।।

'शुभम्  '  न   रहता    रंग, रूप से बन ले दानव।

मत कर जन को  तंग, मूढ़  तू   रह  बस  मानव।।


                         -4-

वानर  मच्छर   कीट   का, जीवन नरक   समान।

दर -दर  भटकें    श्वान  भी,  सूकर पंक  डुबान।।

सूकर     पंक      डुबान, गाय   भैंसें   या बकरी।

खूँटा    रहीं     उखाड़ ,     घूमतीं     जैसे चकरी।।

'शुभम्'  मनुज  तू धन्य,  कर्म कुछ ऐसे नित  कर।

अपनी   योनि    सुधार,   बने   मत मच्छर वानर।।


                         -5-

आओ   निज  सत्कर्म  से, कर लें योनि   सुधार।

जीवन  की  बगिया  खिले, बनें न चोर   लबार।।

बनें    न चोर   लबार , मिलावट  लेश न  करना।

यद्यपि    रहें    सुनार,    धर्म    से   सोना भरना।।

'शुभम्'    न  मानें लोग, उन्हें कितना   समझाओ।

मनुज   देह   में  ढोर,   बनें  क्यों  हम नर आओ।।


शुभमस्तु !


20.11.2025●9.00प०मा०

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