694/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
गोलगप्पे
जीभ
चटखारे
बड़े प्यारे
गली के मोड़ पर।
एक
अनुशासन में बँधीं
जितनी खड़ीं
'पहले मुझे'
'पहले मुझे'
कहतीं नहीं
चली आईं
घरों से रोड पर।
मिर्च भरती
सीत्कारी
जीभ जिनकी,
और दे दे
पानी खट्टा
मजा आ जाए,
खा रही हैं होड़ कर।
आखिरी है
एक सूखा
और मीठा भी खिला दे,
इम्लिका जल
भर बतासा
अब पिला दे,
सारे पैसे जोड़ कर।
शौक अपना
स्वाद अपना
जीभ का
संवाद जपना,
गोलगप्पे
लगें अच्छे
सुनी घण्टी
वे चलीं सब छोड़कर।
शुभमस्तु !
27.11.2025●7.15प०मा०
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