676/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
दो गोल रोटी के लिए
आदमी
क्या -क्या करे।
अन्याय हो
या न्याय हो
चोरियाँ या ग़बन भी,
करता सभी कुछ
आदमी
दो जून को
हर जतन भी।
एक हो
फिर चार पाए
घटती नहीं तृष्णा कभी
भूख भी बढ़ती गई
कुछ और खाना
है अभी।
खा गया सीमेंट चारा
आदमी को आदमी
वासना घटती नहीं
आए नहीं कोई कमी।
रोटियों के स्वाद की
कोई नहीं तुलना कहीं
रजत सोना
खूब खाए
पर नहीं समता यहाँ,
रोटियों के वास्ते
करता रहा है पाप भी,
स्वार्थ से है जूझता
बेटा न समझे बाप को।
पाप पुण्यों से परे रख
अर्जित करे नर रोटियाँ
चाहना उसकी भयंकर
क्या न करतीं रोटियाँ।
धर्म को देखा न जाना
रोटियों को सत्य माना
मर्म पर पत्थर रखा है
आदमी का क्या ठिकाना!
आज तक इस आदमी को
आदमी भी नहीं जाना,
दीखतीं बस रोटियाँ।
शुभमस्तु !
11.11.2025●5.45 आ०मा०
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