शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

कुहासा [ कुंडलिया ]

 695/2025


         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

आई   है  ऋतु   शीत की,मंद  भानु का तेज।

माघ पौष  अगहन  सभी ,रहे  सँदेशे भेज।।

रहे सँदेशे   भेज,   जेठ-सा   नहीं  उजासा।

छाएगा   हर  ओर , देश में सघन  कुहासा।।

'शुभम्' रहो  बेफ़िक्र, ओढ़  कर एक रजाई।

बढ़े   कुहासा-कोप, शीत  ऋतु देखो आई।।


                         -2-

छोटे  दिन    रातें    बड़ीं,  बढ़ा धरा पर शीत।

सघन कुहासा छा रहा,लिया ग्रीष्म को जीत।।

लिया   ग्रीष्म  को   जीत, काँपते हैं नर -नारी।

पशु-पक्षी  जल   जीव,  लता तरु हुए दुखारी।।

'शुभम्'   आग का  साथ,घटाए  दिन ये खोटे।

नहीं   चैत्र  वैशाख,   हुए  दिन  सिकुड़े छोटे।।


                         -3-

नारी-नर   भौंचक   सभी,  देख  कुहासा सेत।

बैठे   घेर    अलाव    को,  बतियाते समवेत।।

बतियाते       समवेत,  सुनाएँ   वृद्ध कहानी।

बढ़ता  शीत    प्रभाव, खाँसतीं दादी-नानी।।

'शुभम्' न दिखती गैल,ओस फसलों पर भारी।

ओढ़े   कंबल    शॉल ,   कुहासे   में नर-नारी।।


                         -4-

मफलर  बाँधे    कान  पर, चमके भानु  प्रताप।

चादर   ओढ़े   देह   पर,सघन   कुहासा भाप।।

सघन  कुहासा  भाप,  देखते   मुखड़ा जल   में।

लहरें  उठतीं तेज,   नहीं   दिखता कल-कल में।।

'शुभम्'  रहे रवि  खीझ,काँपते तल पर थर -थर।

बजा    घड़ी    में  एक, फेंकते अपना मफ़लर।।


                         -5-

रातें    सघन  कुहास की, दिन ओढ़े सित शॉल।

लिए    हाथ    में    भानु की,  गोल गंदुमी बॉल।।

गोल     गंदुमी बॉल, खेलता  अगहन  दिन भर।

बना   हुआ   रवि डॉल, कौन  कहता है दिनकर।।

'शुभम्'     देख   कर  लोग, करें कुछ ऐसी बातें।

बदले   सबका   काल, बदलते   दिन   या रातें।।


शुभमस्तु !


28.11.2025● 9.00आ०मा०

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