गुरुवार, 20 नवंबर 2025

ऊँच-नीच का भेद भुलाती [ सजल ]


 

 681/2025


    


®शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत          : आती

पदांत           : अपदांत

मात्राभार       : 16.

मात्रा पतन    : शून्य।


जीवन    में  जब    समता    आती।

ऊँच-नीच    का      भेद   भुलाती।।


परमहंस    मानव       हो     जाता।

दुराचरण     से    विमुख   कराती।।


जाति-पाँति      का    भेद   बुरा  है।

सद्भावी   को      शृंग       चढ़ाती।।


आत्म  भाव     जीवों     में  बसता।

पाप-ताप   को    शीघ्र     नसाती।।


बोधहीन      है     मानव   कितना।

दुर्भावी       के     किले    ढहाती।।


लड़भिड़   कर   ऊँचा    बनता  है।

क्यों  न  मनुज को बुद्धि  जगाती।।


'शुभम्' किसे समझाओ  कितना।

निम्न  सोच  मनुजत्व    मिटाती।।


शुभमस्तु !


16.11.2025 ●7.15 आ०मा०

                     ●●●


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...