681/2025
®शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
समांत : आती
पदांत : अपदांत
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
जीवन में जब समता आती।
ऊँच-नीच का भेद भुलाती।।
परमहंस मानव हो जाता।
दुराचरण से विमुख कराती।।
जाति-पाँति का भेद बुरा है।
सद्भावी को शृंग चढ़ाती।।
आत्म भाव जीवों में बसता।
पाप-ताप को शीघ्र नसाती।।
बोधहीन है मानव कितना।
दुर्भावी के किले ढहाती।।
लड़भिड़ कर ऊँचा बनता है।
क्यों न मनुज को बुद्धि जगाती।।
'शुभम्' किसे समझाओ कितना।
निम्न सोच मनुजत्व मिटाती।।
शुभमस्तु !
16.11.2025 ●7.15 आ०मा०
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