बुधवार, 26 नवंबर 2025

खेल खेलना लगता उत्तम [ सजल ]

 686/2025




©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


समांत          : अन

पदांत           : अपदांत

मात्राभार      :  16.

मात्रा पतन   :  शून्य।


चंचल    चपल   चुलबुला   बचपन।

दिखलाता   है    कितने    ठनगन।।


खेल    खेलना      लगता     उत्तम।

बचपन  से    जीवन    हो  शोभन।।


अम्मा    दादी      लाड़       लड़ाएँ।

बाबा   कहें     पौत्र     जीवन-धन।।


गिल्ली -डंडा      गेंद         कबड्डी।

कभी   बनाते   किरकिट  के   रन।।


गली-गली    में     धूम       मचाते।

बाग-बगीचा       घूमें       वन-वन।। 


कहें      पिताजी  पढ़      लो    बेटे।

पढ़ने  में  पर    लगे      नहीं    मन।।


'शुभम्'  सुनहरे    दिन   जीवन के।

चकरी-सा    फिरता  है   घन -घन।।


शुभमस्तु !


24.11.2025●7.30 आ०मा०

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