शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

फिर भी बढ़ते रहना है [ नवगीत ]

 690/2025


         

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


आगे का पथ

पता नहीं है

फिर भी बढ़ते रहना है।


जो होना है

होना ही है

पर तारीख हमें अज्ञात

सोच समझकर

बढ़ता जा तू

होनी ही अब लंबी रात

नई सुबह

फिर होगी बंदे

रहे न तन का गहना है।


माया साथ न

जाए किसी के

महल बैंक कारें सोना

रहे न तन पर

धागा किंचित

मचे यहाँ रोना-धोना

राख बने 

या गड़े खाक में

या सरिता में बहना है।


द्वेष बैर

सब छोड़ 

यहाँ के झूठे सारे नाते हैं

प्रेम मंत्र से

जग चलता है

खग 

कलरव कर गाते हैं

उठे कँगूरे

ऊँचे -ऊँचे 

जाने किस पल ढहना है।


शुभमस्तु !


27.11.2025●10.00आ.मा.

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