सोमवार, 3 नवंबर 2025

निष्ठा [ चौपाई ]

 662/2025


            

 ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


ईश्वर       के     प्रति  निष्ठा   भारी।

भक्ति   पंथ      की    कर   तैयारी।।

सत्य  आचरण      जो    नर  करते।

प्रगति  राह     में  वही      विचरते।।


मात-पिता      में     निष्ठा   रखना।

सेवा का  फल     उसको   चखना।।

निष्ठा-नाश      भक्ति     उर   नाशी।

कृपा करें क्यों    गुरु    अविनाशी।।


निष्ठा-विटप     मधुर    फल  देता।

जो करता वह   फल- रस    लेता।।

निष्ठा   की      बगिया      महकाएं।

स्वाद  भरे  फल नित    प्रति  पाएँ।।


निष्ठा    मय     श्रीराम     सुहाए।

गुरु    वशिष्ठ   उर     से  अपनाए।।

ध्रुव  ने     निष्ठा  से     पद  पाया।

सिंहासन   नृप    का      ठुकराया।।


 कश्यप हिरण्य     असुर  थे  राजा।

निष्ठा      का     बजवाते     बाजा।।

सुत     हरि - निष्ठा   में  रत  ज्ञानी।

माने      नहीं    जनक   अभिमानी।।


निष्ठा  बिना    जगत    कब  चलता।

हो अभाव   मानव     को    छलता।।

गुरु-शिष्यों      की      निष्ठा-क्यारी।

खिले  जगत    में    नव    फुलवारी।।


'शुभम्'     चलो    निष्ठा  अपनाएँ।

जगती में    प्रसिद्धि      नित    पाएँ।।

गुरुजन   मात-पिता      की     निष्ठा।

बढ़ती     जग    में     नित्य प्रतिष्ठा।।


शुभमस्तु !


03.11.2025●11.00 आ०मा०

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