674/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्
सराहना से
मन गदगद हो जाता है
तन फूलकर कुप्पा,
सुनने वाला भी
जानता है
कि सराहना में
सचाई का प्रतिशत क्या है!
सराहना की दाल में
झूठ का छोंक
न लगे तो
सराहना कैसी ?
तभी तो दूर- दूर तक
महकती ऐसी
हाँडी में
घर की भैंस की
लवनी खदक-खदक
मोहल्ले भर में
गमकती वैसी।
झूठी सराहना के बिना
छोरे- छोरी का
विवाह मुश्किल,
दूध की खीर में
मीठा मिलाना ही
पड़ता है,
तभी घोड़ी का पैर
दूल्हे को लेकर
आगे बढ़ता है।
सराहना
वह भी झूठी सराहना
विज्ञापन की दुनिया की
सर्वस्व प्राणाधार,
उसके बिना
विज्ञापन बेकार
निस्सार।
वोट हथियाने के
हथकंडे
नेताओं के पास,
जनता की प्रशंसा
झूठे आश्वासनों की घास,
चराये जा रहे हैं,
खिलाए जा रहे हैं,
अंधेर तो तब है
वे सच जानकर भी
सूखी घास खाए
जा रहे हैं,
खाए जा रहे हैं।
सराहना एक
दमदार गरम मसाला है
जिसने भी उसे पाया है
दाल सब्जी में डाला है,
उसे परचम ही फहराया है
कुछ नया कर डाला है।
सबके वश की
बात नहीं है
सराहना,
कुछ लोगों को
कुछ प्रजातियों को
इसका अनुवांशिक
अधिकार पत्र जो मिला है,
तभी तो उनकी जुबाँ पर
बारहों मास पाटल का फूल
खिला है।
शुभमस्तु !
10.11.2025●8.45 प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें