गुरुवार, 20 नवंबर 2025

करतूत [ सोरठा ]

 684/2025


                  

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


भोग रहा  फल    देश,आतंकी करतूत का।

बदल-बदल कर वेश,घुसते रोहिंग्या कभी।।

उनका   एक   न   रूप,जो चरित्र से हीन हैं।

रूप   दिखाए   धूप,  खुलती है करतूत तो।।


फल   भोगें   माँ-बाप,संतति की करतूत का।

जन -जन  को दे  ताप,आता है  वह एक दिन।।

करे   न   नर करतूत, यदि  चरित्र उत्तम रहे।

क्या   चुड़ैल  क्या भूत,  सुधरें  तेरे आजकल।।


नर-नारी    आबाल,  करते   हैं करतूत सब।

करते   हुए   कमाल ,पाँव   पालने   में दिखें।।

करें   न   कुछ करतूत,करें  नियंत्रित पुत्र को।

लेश   न    विकृत भूत,सुधरें   तेरे आज- कल।।


फन     फैलाए    नाग ,सोने   पर जिनके तने।

फूट  रहे    जन   भाग,  क्रूर   कपट करतूत ये।।

बच    जाते  हैं  साफ, दुष्कर्मी  करतूत    कर।

करतूती  हो   माफ़,  निरपराध    को  दंड हो।।


सभी    देखते   लोग,रँग  काला करतूत का।

कृत का   भोगें   भोग, न्याय -दंड के सामने।।

वही साक्ष्य   है   मात्र,जब करता करतूत तो।

बने   दंड   का   पात्र,यही सोच मन में बसे।।


गया    रसातल   देश,  भ्रष्टों   की करतूत   से।

बदल  रहे   नित   वेश,आस्तीन   के साँप ही।।


शुभमस्तु !


20.11.2025●11.00 आ०मा०

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