बुधवार, 12 नवंबर 2025

सपने में [अतुकांतिका ]

 673/2025


           ©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जब तक सपने में हैं

सपना सच ही है

जीवन की तरह,

टूटते ही सपना

सब बिखर -बिखर 

जाता है,

तभी पता लगता है

कि सपना था,

जो टूट गया।


जीवन की 

अतृप्त आकांक्षाएँ

सपना बन

दिखती हैं,

सब कुछ लगता है

जीवंत हँसता गाता जीवन

जाग्रत अवस्था में

सपने धूल धूसरित होते

लोग सोच - सोच कर

हँसते गाते रोते।


देखा गया सपना

भला किसका

 सच हुआ है,

कहीं दिखते

उसे महल दुमहले 

कहीं  आभूषण 

रुपहले सुनहले

रंक राजा बना

कभी बियावान घना।


एक अद्भुत संसार

सपनों का संचार

न कुछ का

कुछ हो जाता साकार

झोंपड़ी में 

महल का आकार।


जीवन का एक आयाम

यह भी

मस्तिष्क का 

कल्पना लोक

व्यर्थ ही आराम हराम।


बच्चे से बड़ों तक

सभी देख रहे सपने

कोई बता सकता है कि

कब हुए ये आपके अपने,

पर अंततः सब 

वही का वही,

क्यों बनाते हो अरे मित्र

अपने दिमाग का दही।


जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति

और तुरीयावस्था

मन की चार अवस्थाएँ,

सभी जन इन्हीं में

जीवन बिताएँ,

बहुत कम हैं वे जन जो

चौथी में उतर पाएँ।


शुभमस्तु !


10.11.2025 ●8.15प०मा०

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