665/2025
[गुनगुना,धूप,बादल,मेघ,अठखेलियाँ]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
पीने से जल गुनगुना,मिटती गला खराश।
हानि करे जल -शीतता,हो न रोग का नाश।।
मौसम लगे सुहावना, अगहन का अनुरूप।
तेज गुनगुना भावता,सुखद लगे नव धूप।।
धूप देख नर -नारियाँ,बालक वृद्ध जवान।
आनंदित हैं शीत में, करती नेह प्रदान।।
जेठ मास की धूप का, सहा न जाए रूप।
उधर देख लो भूमि से, शीतल जल दें कूप।।
बीत गई बरसात भी, आया अगहन मास।
फिर भी बादल देख लो,भरें गगन में श्वास।।
बादल छाए व्योम में,दुख में कृषक उदास।
फसल करें चौपट खड़ी,तनिक न आए रास।।
समय-समय की बात है,मेघ करें खिलवाड़।
सावन-भादों मास में,जन-जन में अति चाड़।।
विरहिन के संदेश को,ले जाना पति ओर।
मेघ पत्रवाहक बनो, कोयल करती शोर।।
करते हैं अठखेलियाँ,अंबर में पिक कीर।
दृश्य मनोरम सोहता, महके गंध उशीर।।
बादल की अठखेलियाँ, सदा न देतीं चाह।
पके धान गोधूम हों,लगता अशुभ प्रवाह।।
एक में सब
रूप गुनगुना धूप का, बादल मेघ प्रवाह।
करे प्रबल अठखेलियाँ,कृषक भरे मुख-आह।।
शुभमस्तु !
05.11.2025●4.15 आ०मा०
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