गुरुवार, 20 नवंबर 2025

जीवन में जब समता आती [ गीतिका ]

 682/2025


      


®शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'



जीवन    में  जब    समता    आती।

ऊँच-नीच    का      भेद   भुलाती।।


परमहंस    मानव       हो     जाता,

दुराचरण     से    विमुख   कराती।


जाति-पाँति      का    भेद   बुरा  है,

सद्भावी   को      शृंग       चढ़ाती।


आत्म  भाव     जीवों     में  बसता,

पाप-ताप   को    शीघ्र     नसाती।


बोधहीन      है     मानव   कितना,

दुर्भावी       के     किले    ढहाती।


लड़भिड़   कर   ऊँचा    बनता  है,

क्यों  न  मनुज को बुद्धि  जगाती।


'शुभम्' किसे समझाओ  कितना,

निम्न  सोच  मनुजत्व    मिटाती।


शुभमस्तु !


16.11.2025 ●7.15 आ०मा०

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