गुरुवार, 20 नवंबर 2025

हुई सुहानी भोर हुई सुहानी भोर [ गीत ] [ गीत ]

 683/2025


          


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सूरज जगा

जगा जड़-चेतन

हुई सुहानी भोर।


प्राची में 

लालिमा अनौखी

अग-जग है रंगीन

चहक उठीं

चिड़ियाँ पेड़ों पर

मौसम हुआ नवीन

पीहो-पीहो

करें बाग में

उड़ -उड़ मोहक मोर।


सरिता में 

प्रतिबिंब मनोहर

भानु रहा है झाँक

सोने-सी हैं

लहरें जल में

कहीं न दिखती पाँक

पूरब पश्चिम

उत्तर दक्षिण

उठती है नव रोर।


वेला ब्रह्म मुहूर्त

नहाते

सरिता  में बहु लोग

खड़े किनारे पर

कुछ बैठे

करते हैं कुछ योग

अमृत वेला का

सुख लूटें

जन मानस हर ओर।

शुभमस्तु !

18.11.2025◆7.30आ०मा०

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