689/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जल तल पर
मुख-बिंब निहारें
भुवन दिवाकर देव महान।
वेला ब्रह्म मुहूर्त
अँधेरा छाया है
घनघोर अभी
इधर उषा की
लाली छाई
उजलाती सर्वस्व सभी
ठिठुर रहे
जाड़े में कितने
नर-नारी है नदी सिवान।
थर-थर थर-थर
काँप रहे जन
कुछ इसका उपचार करें
शीत सताए
नहीं देह को
आग जलाएँ शीत हरें
केसरिया रँग
घोल दिया है
सरिता में ज्यों कनक समान।
प्राची का यह
रंग सुनहरा
जड़-चेतन में रंग भरे
जागो-जागो
लगो काम में
देख तमस भी दूर डरे
अभी शून्य में
चमक रहे हैं
कुछ तारे ज्यों एक वितान।
शुभमस्तु !
25.11.2025 ●8.30 आ०मा०
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