667/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
होता है अनुमान का, मापन सदा न सत्य।
हो प्रत्यक्ष संज्ञान से, औचित्यों का तथ्य।।
औचित्यों का तथ्य, बनाए गए सुभीते।
मीटर बाँट अनेक, शृंखला लंबे फीते।।
'शुभम्' गलत अनुमान,सदा ही रहता रोता।
घड़ी चले अनुकूल,आँक पल -पल का होता।।
-2-
मानव को अनुमान से,कभी न आँकें मीत।
बाहर से कुछ और है, अंदर से विपरीत।।
अंदर से विपरीत, आचरण की गहराई।
हो न शीघ्र अनुमान, शत्रुता और मिताई।।
'शुभम्' दीखता नेक, हृदय से कोई दानव।
परखें खूब विवेक, सत्य में है वह मानव।।
-3-
दुनिया में अनुमान के, चलते हैं नित खेल।
गलत सही होते सभी,सदा न शुभता मेल।।
सदा न शुभता मेल,खेल बिगड़ें या बनते।
बढ़ते विविध फ़साद, झूठ पर मानव तनते।।
'शुभम्' न सबके हाथ, सत्यप्रद कोई गुनिया।
करती है अनुमान, नित्य ही कितने दुनिया।।
-4-
होता सदा परोक्ष है, जन-जन का अनुमान।
सत्य रहे कुछ और ही,लगभग वह संज्ञान।।
लगभग वह संज्ञान, इसी से चलती दुनिया।
सदा न कर में एक , धारती सच की गुनिया।।
'शुभम्' कभी अनुमान, सत्य की नाव डुबोता।
और कभी वह तथ्य, फीसदी अनुपम होता।।
-5-
अनुभव से अनुमान में,लग जाते हैं चाँद।
एक नहीं दो चार भी, महल बने हैं माँद।।
महल बने हैं माँद, तमस में ज्ञान समाया।
अनहद में शुभ नाद, बदल दे नर की काया।।
करता 'शुभम्' कमाल, शंभु का शोभन अजगव।
करे त्रिपुर का नाश,शंभु का संभव अनुभव।।
शुभमस्तु !
07.11.2025● 7.30आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें