675/2025
© शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
उन्हें पता है कि
यहाँ दाल गल जाएगी,
मुफ्तखोरी का आलम है
कोई बाधा है न रुकावट,
कुछ भी करो
कोई करेगा नहीं आहट,
आराम से मुफ्त की खाओ
मौज मनाओ
बच्चे पैदा करो
और चैन की वंशी बजाओ।
उन्हें पता है कि
किसी के कान पर
नहीं जूं रेंगने वाली,
वेश बदलो
अपना देश बदलो
जरूरी हो तो
केश का स्टाइल भी बदलो,
और नए नाम और
धाम से सीना तान कर चलो।
यहाँ भ्रष्टाचार का
बोलबाला है
सचाई और ईमान को
देश निकाला है,
हर चोर उचक्का
सफल होना ही
होना है,
यहाँ किसी बात का
नहीं रोना है
बस अपने मजहबी पौध की
हरी - हरी फसल बोना है।
यहाँ का कुछ फीसद
निश्चित ही गद्दार है,
जिसे लेश मात्र भी
नहीं अपने देश से प्यार है,
पैसे देकर उसे खरीद लो
कुछ भी करवा लो
उसकी इज्जत
बहन बेटी लेलो,
गुलामी
इसके रक्त में बसी है,
इसमें जागरूकता की
पूरी कमी है,
इसकी आँखों में
न पानी है
न दो बूँद बची नमी है,
भविष्य स्वतः दिखाई
दे ही रहा है,
यह कथन मैने ही नहीं
हर विचारक ने कहा है।
शुभमस्तु !
10.11.2025●9.00प०मा०
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