696/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बदलें त्यों कानून,ज्यों-ज्यों होते वक्र जन।
विकट कूट मजमून ,शातिर मानव बुद्धि का।।
डाले नाक नकेल, हाथ बड़े कानून के।
पुलिस रही नित पेल ,बचें नहीं डाकू कभी।।
बँधी पट्टिका एक, आँखों पर कानून के।
निर्णय हो सविवेक,समता दिखलाती सदा।।
करे वही कानून, आम आदमी के लिए।
लगा कान पर फून, चलता दाएँ रोड पर।।
जग में पूर्ण अभाव,होता यदि कानून का।
करें परस्पर घाव , जंगल होता देश में।।
नेताजी जनतार्थ, बना रहे कानून को।
समझ रहे हैं व्यर्थ,स्वयं नहीं चलते कभी।।
सबके लिए समान, मुक्ति नहीं कानून से।
निर्धन या धनवान, कोई नहीं विशेष है।।
पथ पर नियम संवार, चलता जो कानून के।
बचता रहे प्रहार, रहे सुरक्षित देश में।।
लेशमात्र भी मीत,नहीं शिथिलता क्षम्य है।
तुम लोगे जग जीत,चलो नियम - कानून से।।
चलें नहीं जगदीश,बिना नियम - कानून के।
झुके चरण में शीश, कण-कण ये गतिशील है।।
बना हुआ आधार,जन्म -मृत्यु हर योनि का।
करता प्रथम विचार,प्रभु का वह कानून ही।।
शुभमस्तु !
28.11.2025●10.15 आ०मा०
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