बारहमासी हो गया ,
राजनीति का खेल।
सौ में नब्बे चोर हों,
दस की होगी जेल।।
दस की होगी जेल,
गंदगी कहाँ नहीं है !
अवसर मिला न 'नेक',
आदमी वही सही है।।
कोशिश कर ली 'शुभम'
किन्तु मन बड़ी उदासी।
राजनीति की रेल बैठ,
गा बारहमासी।।1।
गा बारहमासी।।1।
चैत गया वैशाख भी,
मास आ गया जेठ।
दिया न जिसने मत तुझे,
उसके कान उमेठ।।
उसके कान उमेठ,
अषाढ़ी उमस बढ़ेगी।
सावन भादों मँहगाई -
की मार चढ़ेगी।।
पेट रॉल करने लगे,
धार तेल की देख।
कार्तिक और कुआर में,
चिंता लौटी चैत।।2।
अगहन में अदहन चढ़ा,
कर विदेश की सैर ।
पूस मास नौ लाख का,
सूट पहन क्या देर?
सूट पहन क्या देर ,
ढोंग का खोल पिटारा।
फ़ागुन में फिर पिचकारी,
की मारो धारा।।
जनता भेड़ समान,
दिखाता किसको ठनगन
गल जाएगी दाल ,
मास जब आए अगहन।3।
मंदिर के भगवान भी ,
नहीं सुरक्षित आज।
काले धन के चढ़ रहे,
वहाँ स्वर्ण के ताज।।
वहाँ स्वर्ण के ताज,
ताज से राज चलेगा।
ईश्वर का अवतार ,
स्वर्ण में स्वयं ढलेगा।।
चढ़े पुजापा रोज़ ,
गुप्त धन अन्दर-अन्दर।
नेता ही भगवान,
भक्त क्यों जाए मंदिर।4।
पट्टी बाँधी आँख पर ,
चले जा रहे लोग।
होता यही प्रचार नित ,
'योग भगाए रोग'।।
योग भगाए रोग ,
दवा क्यों बनी हजारों ?
कर लो कायाकल्प ,
रोग को गोली मारो।।
धधक रही है भट्टी,
हो लो गोरी चिट्टी।
क्रीम लिपस्टिक पोत,
आँख पर बाँधे पट्टी।5।
💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🌿 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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