बुधवार, 22 मई 2019

बारहमासा [कुंडलिया]

बारहमासी    हो    गया ,
राजनीति     का   खेल।
सौ   में   नब्बे  चोर  हों,
दस  की    होगी  जेल।।
दस  की    होगी   जेल,
 गंदगी   कहाँ  नहीं  है !
अवसर  मिला  न 'नेक',
आदमी   वही  सही है।।
कोशिश कर ली 'शुभम'
किन्तु मन बड़ी उदासी।
राजनीति की रेल बैठ,
गा        बारहमासी।।1।

चैत   गया   वैशाख भी,
मास  आ   गया    जेठ।
दिया न जिसने मत तुझे,
उसके     कान   उमेठ।।
उसके    कान     उमेठ,
अषाढ़ी   उमस  बढ़ेगी।
सावन  भादों   मँहगाई -
की      मार       चढ़ेगी।।
पेट   रॉल   करने    लगे,
धार    तेल    की   देख।
कार्तिक और कुआर में,
चिंता   लौटी   चैत।।2।

अगहन में अदहन  चढ़ा,
कर   विदेश    की  सैर ।
पूस मास नौ  लाख का,
सूट   पहन   क्या    देर?
सूट     पहन    क्या  देर ,
ढोंग  का  खोल पिटारा।
फ़ागुन में फिर पिचकारी,
की         मारो      धारा।।
जनता      भेड़     समान,
दिखाता किसको ठनगन
गल     जाएगी      दाल ,
मास जब आए अगहन।3।

मंदिर  के   भगवान भी ,
नहीं    सुरक्षित    आज।
काले   धन   के  चढ़ रहे,
वहाँ    स्वर्ण   के ताज।।
वहाँ    स्वर्ण   के  ताज,
ताज  से   राज  चलेगा।
ईश्वर     का     अवतार ,
स्वर्ण  में  स्वयं  ढलेगा।।
चढ़े      पुजापा    रोज़ ,
गुप्त धन अन्दर-अन्दर।
नेता      ही     भगवान,
भक्त क्यों जाए मंदिर।4।

पट्टी    बाँधी   आँख  पर ,
चले    जा     रहे    लोग।
होता   यही   प्रचार नित ,
'योग      भगाए     रोग'।।
योग       भगाए     रोग ,
दवा क्यों बनी हजारों ?
कर   लो    कायाकल्प ,
रोग  को  गोली   मारो।।
धधक     रही    है भट्टी,
हो    लो  गोरी     चिट्टी।
क्रीम  लिपस्टिक पोत,
आँख पर बाँधे पट्टी।5।

💐 शुभमस्तु!
✍ रचयिता ©
🌿 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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