शनिवार, 11 मई 2019

तंदूर ठंडा [व्यंग्य]

   सूरज के निकलने पर चाँद की छवि अपने आप धूमिल हो ही जाती है। अब इसमें हम और आप क्या कर सकते हैं!अरे!भई यह तो प्रकृति का नियम है। इसमें कोई क्या कर सकता है। इसी प्रकार जब दरवाजे पर नया दामाद सिर पर सेहरा, कमर में कटार, ऊपर चमचमाता महकता कुर्ता, नीचे चूड़ीदार पायजामा ,गले में पचास सौ और पाँच सौ के नोटों की माला डाले हुए अपने बरातियों के दल - बल और बैंड बाजे के साथ आने लगता है, तो इधर का सब स्वतः फीका पड़ने लगता है। चमक तो बस एक ही ओर देखने को मिलती है।
   पुराने संबंधियों ,फूफा , साले , ससुर, साढू, बड़े दामाद उन्हें कौन पूछता है भला ! अब तो जो कुछ भी है , बस नए मेहमान औऱ उनकी टीम की ख़ातिरदारी में हाज़िर है। पुरानों का क्या ! उनको तो पूड़ी सब्जी ही खिला दी जाएगी। इसलिए उन्हें बार - बार पूछते रहना है कि आपने खाना खा लिया है या नहीं। जब तक वे खाना न खालें तब तक पूरे परिवार के चाचा , ताऊ , पिता , भाइयों द्वारा बार -बार पूछते रहना अनिवार्य है। इससे दो बातें होंगी ', पहली तो ये कि उन्हें ये महसूस होगा कि देखिए कितना ध्यान रखा जा रहा है हमारा। कितना - कितना सम्मान किया जा रहा है हमारा। दूसरा कारण ये कि स्पेशल खाने को भी नहीं खा सकेंगे। क्योंकि उनका पेट तब तक भर ही चुका होगा। और दूसरी ओर नए दामाद जी और बरातियों के लिए जो विशेष व्यंजन ( शाही पनीर,पालक पनीर, दाल मखानी, दाल अरहर , तंदूरी रोटी, मिस्सी रोटी , रूमाली रोटी , चीला, छोले -भटूरे, पनीर पकोड़ा , भल्ले, इडली - डोसा, साँभर, आइसक्रीम, मिनरल वाटर वगैरह वगैरह) का इंतज़ाम किया जा रहा है , उसमें ये पुराने ब्यौहारी औऱ रिश्तेदार न शामिल हो जाएँ। इससे हमारी बहुत बड़ी बचत हो जाएगी।
   अब रही बात कि स्पेशल में उनके भी शरीक होने की, तो आख़िरी बात ये है कि बरात के खाने औऱ आदरणीय नए मेहमान के स्वागत - सत्कार के बाद जो कुछ जूठन शेष रह जाएगी, उसमें वे भी मुँह मार लेंगे। तो ये भी कहने को बाक़ी नहीं रह जाएगा कि हमें स्पेशल व्यंजन की दावत का आनन्द नहीं लेने दिया गया। अब कुछ बच जाए तो उनकी किस्मत ! अपना तो फ़र्ज बनता है कि रात को बारह बजे के बाद उन्हें सोते हुए से जगाकर कहा जाए अरे ! साहब आप सो रहे हैं , चलिए आप के लिए दावत में इंतज़ार हो रहा है। जल्दी - जल्दी पहुंचिए।
   जब बार -बार कहा गया तो पुरानों का ये भी फ़र्ज ही बनता है कि उनकी बात मानी जाए। बात मानी गई ।. पूरी तरह से मानी गई । पांडाल में पहुँचे भी। पर दृश्य क्या देखा ! स्टाल खाली, भगौने ख़ाली। तंदूरी रोटी गायब। तंदूर ठंडा। कुछ चीले जरूर चिरचरा रहे थे। आइसक्रीम भी मानो कह रही थी , जल्दी जल्दी उठा लो मुझे औऱ गले के नीचे लगा लो मुझे , वरना मैं भी गरम हो गई तो फिर कहीं के नहीं रहोगे! मैं भी शाही पनीर ,शाही कोफ़्ता, तंदूरी और रूमाली रोटी की तरह फुर्र हो जाऊँगी। हाँ, बोतलों में बचा हुआ मिनरल वाटर जरूर आपकी प्रतीक्षा में गर्माहट खा रहा है। उधर भी देख लो , औऱ बिना खाए ही गला तर कर लो। बिना खाए ही करना होगा , क्योंकि स्पेशल तो स्पेशल मेहमानों के लिए ही बना था। वह तो आपका मन रखने के लिए , अगर बचे तो चखने के लिए यूँ औपचारिकता वश पूछ लिया था। अरे ! आदरणीय आपने तो व्यर्थ ही अपनी नींद में खलल डाला ,जो यहाँ चले आए ! पर आपका भी कोई दोष नहीं क्योंकि आपको तो स्पेशल सम्मान देने के लिए स्पेशली जगाया गया था। उठाया गया था। पर कोई बात नहीं आगे से इस बात का ध्यान रखिये। औऱ बीच में स्पेशल खाने के स्पेशल खाने की बात आए तो कह दीजिए : भूख नहीं है। शाम छह बजे ही भर पेट खा लिया था। तब आपका भी सम्मान बचा रहेगा और उनकी बात भी रह जाएगी कि रात बारह बजे पूछा तो था , वे गए ही नहीं। जाते तो तब , जब स्पेशलों से भगोनों में कुछ जूठन बचता तब।

💐शुभमस्तु!
लेखक©
🍑 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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