तुम डाल-डाल हम पात -पात।
हमको देना है तुम्हें मात।।
मिट्ठू बन जाओ भले मियाँ,
सहनी तो होगी तुम्हें लात।।
बहुत फेंक ली कीचड़ भी,
हम समझाते हैं तुम्हें बात।।
गाली और झूठ तुम्हें प्यारे,
जनता ने जाना तुम्हें तात।।
अंधे भक्तों का क्या कहना!
तुम कहो दिवस को कहें रात।
तुम हारो जीतो सदा मज़े,
मिलना खाने को हमें भात।।
अब राष्ट्र - भावना दूर हुई,
दिखती है केवल तुम्हें जात।।
जिनके बलबूते खड़े हुए,
शोभा न दे रही तुम्हें घात।।
भूखी जनता है 'शुभम'यहाँ,
दिखते हैं केवल तुम्हें गात।।
💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें