भोली-भाली सरल गिलहरी।
लम्बी गोरी चपल छरहरी।।
झबरी पूँछ पीठ पर धारी।
दौड़ लगाती आँगन क्यारी।।
बैठ टूङ्गती नन्हें दाने।
छू लो तो लगती शरमाने।।
खेले प्रातः साँझ दुपहरी।
भोली -भाली ....
रोज़ खेलने आ जाती है।
रोटी कुतर - कुतर खाती है।।
अमिया लाल टमाटर खाती।
साथ सहेली भी ले आती।।
खाती दलिया चावल तहरी।
भोली -भाली ....
पेड़ों पर घोंसले बनाती।
लताकुंज में दौड़ लगाती।।
छोटे बच्चे गिरते नीचे।
ले जाती अपने मुँह भींचे।।
जागरूक माँ सच्ची प्रहरी।
भोली -भाली ....
मेरे घर के चार झरोखे।
जिनको कहते हैं हम मोखे।।
सन सुतली रेशे नित लाकर।
नीड़ बनाती खूब सजाकर।।
नींद वहीं लेती है गहरी।
भोली -भाली ....
शिशुओं को वह दूध पिलाती।
पलभर को भी नहीं रुलाती।।
सिखा रही टूङ्गों तुम दाने ।
जल्दी हो लो सभी सयाने।।
लाड़ लड़ाती 'शुभम' फुरहरी।
भोली -भाली ....
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें