तुम्हारी इक झलक का
'गर मुझे दीदार हो जाए।
मेरे मन के अँधेरों की
मलिन दीवार धो जाए।।
तुम्हें दिन - रात ढूँढा है
कि काशी में कि काबा में,
तुम्हें क्या ढूंढ़ते थककर
कोई बीमार हो जाए!
तुम्हारे रूप कितने हैं
तुम्हारा रंग कैसा है ?
तुम्हारी महक का कण पा
ये बेड़ा पार हो जाए।
मुझे नोंचा मुझे लूटा
इसी बेदर्द दुनिया ने,
बचा लो नाथ तुम मुझको
मेरा उद्धार हो जाए।
जहाँ के खुदपरस्तों से
परीशां है 'शुभम' तेरा,
सुनो प्रभु टेर दुखिया की
नहीं अब भार ढो पाए।
💐शुभमस्तु!
✍ रचयिता©
🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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