चौकी पर बिछी हुई चादर हो।
कोई भी बिछा ले जहींचादर हो।
कोई आया झाड़ गया भाषण,
गुलाबी फूलों से सजी चादर हो।
धो पोंछकर सजा गया कोई,
फ़िर से महकी रँगी चादर हो।
पोंछकर हाथों को चला गया कोई,
मनमानी से रखी हुई चादर हो।
चौकी पर 'शुभम 'बदल जाती हो,
कोई भी सो जाए वही चादर हो।
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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