मैं पत्ती 'पेड़ -रसोई' हूँ।
दिन में जग निशि में सोई हूँ।।
मुझमें दिन में भोजन बनता,
पौधे को नव पोषण मिलता।
सूरज से गर्मी ले लेती,
क्लोरोफिल से खाना दे देती।।
ऐसी वैसी नहिं कोई हूँ,
मैं पत्ती .....
दिन में देती मैं घनी छाँव
कौवे करते हैं कांव-कांव।
चिड़िया गाती कलरव गाना,
घोंसले बनाती मनमाना।।
वर्षा -जल से मैं धोई हूँ
मैं पत्ती ....
जब हवा चले मैं हिलती हूँ,
पत्ती बहनों से मिलती हूँ।
जब तक सूरज चमके नभ में,
पकवान बनाती तब तक मैं।।
बालक -सी कभी न रोई हूँ,
मैं पत्ती...
मेरे भोजन से फल बनते,
रसभरे आम डाली लटके।
सब सेब संतरे केला भी.
सब्जियाँ हरी हर ठेला की।।
जो खेत बाग में बोई हूँ
मैं पत्ती .....
पीली होकर मैं गिर जाती,
बन खाद पेड़ हित मर जाती।
देती पौधे को हर पोषण,
करती न किसी का मैं शोषण।।
मैं 'शुभम' स्वयं में खोई हूँ,
मैं पत्ती ....
💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
☘ डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम'
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