एक दिन की
पूर्णता के लिए
उन्तीस दिन की तपस्या ?
विचारणीय रहस्य !
इतना धीरज?
प्रतीक्षा इतनी दीर्घ?
प्रेरक हो तुम महान!
नीलाकाश में
चमकते हुए चाँद ।
न कोई त्वरा
न भ्रम
न कोई रण,
अहर्निश
चरैवेति चरैवेति की नीति
का वरण,
निज लक्ष्य पर
अग्रसर तव चरण।
जूझना बस एकाकी,
संतोष और शांति हावी,
न कहीं आपाधापी
व्यग्रता विवशता भी।
उपमा सुमुखी की
निर्दाग नारी की
कवियों के प्रिय
बसते हो हिय-
कमलिनी के
चन्द्रिकापायी
चकोर के जीवन
अनन्य प्रेम रस के
उद्बोधन संबोधन।
नहीं सीखा
मानव तुमसे कुछ,
बेकली व्यग्रता में
कटता जीवन,
पूर्णता के लिए
तपना और तपना ही
जीवन,
छीजना बढ़ना
चलना चढ़ना ढलना
पुनः उगना चलना
यही क्रम बनना ,
यही तेरी प्रेरणा का
अनुदिन का नियम,
पूर्णता मिलती ही है
एक दिन।
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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