बुधवार, 29 मई 2019

जिया को तड़पाए रे! [लोकगीत]

कोयलिया कूके जिया को तड़पाए रे!
अबहुँ न आए पिया तरसाए रे!!

मोरे   पिया    परदेश   गए हैं,
जियरा में   मोरे   घाव भए हैं,
रात-दिना पिय याद सताए रे!
कोयलिया कूके....

चैत   महीना    कोंपल   फूटीं,
बगियनु  खिली फूल की बूटी,
आवनि औध न कोई बताए रे,
कोयलिया कूके....

कहि कें  गए अबहुँ नहिं आए,
कहत  सखी  सूं  हम शरमाए,
फ़ोन करें नहिं चिठिया आए रे
कोयलिया कूके....

राति न नींद दिवस नहिं चैना,
मुख सों कहि आवै नहिं बैना,
निकरै तौ बैरिनि हाय हाए रे!
कोयलिया कूके ....

सामन को झरु लगि रहौ भारी,
चूनर   चोली    सूखी    सारी,
पिया बिना मोहि कौन भिगाए रे!
कोयलिया कूके ....

💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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