गोरे - गोरे पाँव तुम्हारे ।
थिरकें अँगना में रतनारे।।
चलती हो या नाच रही हो।
प्रेम - पत्रिका बाँच रही हो।।
थिरकन की किससे तुलना रे।
देख न हारे नयन हमारे।।
गोरे-गोरे पाँव ....
कटिसंचालन का क्या कहना
प्रातः की सुगंध का बहना।।
गति लय लास्य ललित रचना रे।
पावन पायल का बजना रे।।
गोरे-गोरे पाँव ....
सरिता में ज्यों लहर उछलती।
कल कल छल छल रम्य मचलती।।
मंत्र - मुग्ध होते हैं सारे।
नील गगन के टिम टिम तारे।।
गोरे -गोरे पाँव ....
अधरों में मुस्कान मनोहर।
चितवन से सारे दुःख खोकर।
झुकीं पलक देखीं हम हारे।
विधना ने अंग - अंग सँवारे।।
गोरे -गोरे पाँव ....
लोल कपोल गुलाबी लज्जा।
कुंतल की सोहित नव सज्जा
'शुभम' सुखद पृष्ठांग कुँवारे।
देते पल - पल सबल सहारे।।
गोरे-गोरे पाँव.....
💐 शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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