बादल आओ जल बरसाओ।
धरती माँ की प्यास बुझाओ।।
बिना नीर के धरती प्यासी।
सूखी चटकी बड़ी उदासी।।
तेज़ धूप औ' गर्म हवाएँ।
लू लपटों सँग धूल उड़ाएँ।।
सारे अम्बर में छा जाओ।
बादल आओ.....
सूखी लता पेड़ भी सूखे।
बिन पानी प्यासे औ' भूखे।।
गिरे लाल गुलाब धरती पर।
सूखी फ़सलें भी परती पर।।
गर्मी की सब तपन नसाओ।
बादल आओ.....
चूं चूं गौरेया नित बोले।
सुबह उठे जल्दी मुख खोले।।
दाना माँग रहे दो बच्चे।
नन्हे बिना परों के अच्छे।।
दाना -पानी उन्हें दिलाओ।
बादल आओ....
कृषक ताकते तुमको ऊपर।
देख दशा पानी की भूपर।।
कैसे फ़सलों को दें पानी।
पत्ते हरे - भरे हों धानी।।
सागर से जल भरकर लाओ।
बादल आओ....
उछल - कूद जल में खेलेंगे।
मम्मी से अनुमति ले लेंगे।।
दूर देह की गरमी होगी।
अम्मा लौकी तोरई बो' गी।।
'शुभम'न इतना जी तरसाओ।
बादल आओ.....
💐शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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