शनिवार, 25 मई 2019

अनिवार्य गंदगी [व्यंग्य]

   जी हाँ, मैं अनिवार्य गंदगी हूँ।जन मानस और देश की रग - रग में बहती हुई एक ऐसी अदृश्य रागिनी, जो पूरे देश को मथ रही हूँ। आदिकाल से आधुनिक काल तक आते - आते  मैनें  काल -प्रवाह के  न  जाने   कितने -कितने मार्गों पर अपनी यात्रा की है और अनजाने कितने-कितने मोड़ों पर मुड़ी, तुड़ी, जुड़ी , बनी और बिगड़ी हूँ। मैंने  कभी भी अपने सिवाय किसी  दूसरे का भला नहीं सोचा। सोचा तो केवल और केवल अपना ही भला सोचा। मैं बनी ही इसलिए हूँ कि भला केवल मेरा हो। मैं जिसे चाहूँ उसीको सब चाहें। 'लव मी एंड लव माई डॉग' की कहावत को सौ फ़ीसद सिद्ध करना ही तो मेरा मक़सद है।
   मेरे बहुत से रूप हैं। कहीं मैं जातिवाद के नाम पर अपनी ही जाति के लोगों को आगे बढ़ाने, उन्हें नौकरी दिलाने, अयोग्य होने पर भी अधिक से अधिक अंक दिलाने, दूसरों को नीचे गिराने के  काम करती रही हूँ।अपनी जाति के लोगों के अधिकतम मत हासिल करने के हथकंडे मेरे हाथों में ही तो हैं। उन्हें विविध प्रकार के प्रलोभन देकर, आश्वासन देकर अपना बनाना मेरा बायें हाथ का खेल है। सामने वाले को धोबी पाट देकर कैसे पछाड़ कर चित कर देना है , इस कला को कोई मुझसे सीखे! मुझे अनगिनत कलाओं में महारत हासिल है। मेरे मुख्य रूप से चार हथियार हैं : साम, दाम, दंड और भेद। इन्हीं चारों में जिसका जहाँ उपयोग हो जाये, बख़ूबी करती हूँ।अवसर को चूकना मेरा काम नहीं है। यदि चूक ही गए ,तो गए काम से! इसलिए  प्रतिक्षण जाग्रत रहना औऱ सावधानी पूर्वक अपने काम को अंजाम देना मेरी कलाकारी का विशेष  गुण है।
   हाँ, तो मैं अपने विविध रूपों की चर्चा कर रही थी। जातिवाद की ही तरह वंशवाद की चाशनी चाटने का मेरा बड़ा शौक है। यही तो यहाँ अच्छाई है कि रसगुल्ले भी खाओ और इच्छा हो तो रस भी पी जाओ। यहाँ कंचन और कामिनी की  पावस ऋतु  केवल तीन महीने के लिए नहीं आती , बारहों मास , चौबोसों घण्टे  हर क्षण यहाँ वसंत का डेरा लगा रहता है। इसीलिए तो जो आदमी मुझे पसंद करता है, मेरे सिद्धान्तों को मानता है, मेरे मार्ग पर चलने के लिए कमर कस लेता है, वह कभी घाटे में नहीं रहता।यहाँ तेल लगाने से लेकर मक्ख़न लगाने और खाने -खिलाने तक का पूरा ही इंतज़ाम है। जो मेरे मार्ग पर एक बार चल पड़ा , वहाँ कुछ असहज लोगों को छोड़कर कभी मुड़कर पीछे नहीं देखना पड़ा। वह मेरे पथ पर एक बार अग्रसर हो गया तो हो गया ,बस। फिर तो कदम-कदम पर मिलना ही है उसे रस। अगर अकेले चलने का नहीं है वश, तो अनेक साथी रास्ते में कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ाने के लिए मिल ही जायेंगे। जो हर लड़खड़ाते कदम पर आपका मनोबल बढ़ाएंगे। सहारा देंगे
और ऊँचा उठाएंगे।
   क्षेत्रवाद भी मेरा ही एक रूप है। एक क्षेत्र विशेष को ही पूरा देश समझो। बस। सीधा सा फार्मूला है। किसी ने घर परिवार को देश समझा, किसी ने थोड़ा आगे बढ़कर अपने बड़े दिलदारपन का परिचय देते हुए  अपनी पूरी जाति को ही देश मान लिया औऱ बस मैं शुरू हो गई। उससे भी आगे बढ़े तो अपने क्षेत्र अर्थात मंडल, जनपद, तहसील , विकास खंड तक अपना ढोल पीटते रहे। जिसकी जितनी औक़ात, उससे आगे बढ़ें कैसे?
   सुंदर -सुंदर नारे गढ़कर देश सेवा, देश का विकास, गरीबी हटाओ,  शिक्षा दो बेरोजगारी दूर करो, वैज्ञानिक क्रांति के अग्रदूत बनकर भी मुझे औऱ सुंदर रूप में प्रस्तुत करने वाले लोग रष्ट्रीय स्तर पर नाम  कमा लेते हैं। वे लोग देश  के ऊँचे -ऊँचे पदों पर मखमली लाल कालीनों पर कदम रखते हुए देखे जा सकते हैं।
   बाहरी रूप से मुझे दुत्कारा  फटकारा जाता है। पर अंदर से तो कुछ को छोड़कर सभी मेरा आलिंगन ही नहीं करना चाहते, उसमें सदा - सदा को  बंध जाना चाहते हैं।  उधर  मेरी  भी मजबूरी है कि मुझे किसी को अपने दरवाजे पर आ  जाने पर  उसका स्वागत करने के लिए उसे चौबीसों घण्टे के लिए खोले रखना पड़ता है। मेरे यहाँ सबका स्वागत है। अब देखिए मैं कहाँ नहीं हूं। जहां नहीं होना  चाहिए , वहाँ भी भलीभाँति फल फ़ूल रही हूँ।किसी मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारा में भी घुस चुकी हूँ। किसी मंदिर का बनना न बनना मुझे ही बताना है। स्कूल कालेजों आज मैं  ख़ूब फल -फ़ूल रही हूँ।  कहीं -कहीं तो मेरे बिना पत्ता तक नहीं खटकता। शिक्षा का पूरा क्षेत्र मेरी दुर्गंध से  गंधायित है। इसीलिए मेरे ही बलबूते पर शिक्षा आज पवित्र नहीं रह गई। वह एक उद्योग धंधा
बन गई है। अब बिना पढ़े- लिखे  कल्लू ,  नट्टू, कल्लो, बिल्लो  शिक्षा -माफ़िया बनकर लाखों -करोड़ों में खेल रहे हैं। फीस जमा करो, औऱ घर जाओ। बुलाएं , तब फार्म भर देना। परीक्षा न दे सको तो अपने किसी रिश्तेदार को भेज देना। वह भी न हो, तो हमें बताना , इंतज़ाम हो जाएगा। बस दस बीस हज़ार की बात है। 95 से 99 फ़ीसद नम्बरों की गारंटी के साथ हमारी संस्था,  विश्वविद्यालय में पास होने की गारंटी है। जहाँ- जहाँ भी जाओगे। मझें  ही सर्वत्र पाओगे। यदि मुझसे दूरी बनाओगे तो बार-बार पछताओगे। शासन में, प्रशासन में, राशन में, अदालत में , कोर्ट में , कचहरी में सभी जगह मेरा एकक्षत्र राज है।
   कभी महाभारत काल में  विदुर महाराज ने विदुर नीति लिखी थी। लेकिन ऐसी नीतियाँ अब गए जमाने की बातें हो गई हैं। अब कौन पूछता है ऐसी नीतिओं को? कौन चलता है उन नीतियों पर? वे सब अब किताबी ज्ञान की बीते काल की बातें काल के गाल में समा चुकी हैं। अब तो येन केन प्रकारेण अपना उल्लू सीधा करने का नाम ही है मेरा। जो मेरे बताये इस मार्ग पर चलता है, वह सदा सुखी रहता है। दूधों नहाता औऱ पूतों फलता है। वरना साँझ के सूरज की तरह ढलता है।
   नए- नए सभी सांसदों को मेरी पावन सलाह है कि वे आयें ,मुझे गले लगाएँ, फ़िर तो वे जो चाहें सो पाएँ, क्योंकि जब पकड़ ली हैं उन्होंने ये बाँहें तो मुझसे दूर क्यों जाएँ?

💐 शुभमस्तु!
✍ लेखक ©
🎷 डॉ.भगवत स्वरूप ,'शुभम'

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