तोरे मन में का समाई बताइ दै राजा।
मैं जान नहीं पाई जताइ दै राजा।।
फ़ागुनु महीना रातिअँधियारी,
देखि देखि मोरीअँखियाँ हारी,
पहले कही मैंने ना जा सैयाँ,
छोड़ि गयौ तू मोरी बैयाँ,
चैन को मोरे बजायगौ बाजा।
तोरे मन में ......
बीति गई अब आधी रतिया,
फुस- फुस का तू बोलै बतियाँ,
बैठी - बैठी रोइ रई हूँ,
अंसुअन गालनु धोइ रई हूँ,
अब का तोहे मोहि सौं काजा।
तोरे मन में.....
तू रुठै मैं रूठी तोसों,
करै न मीठी बतियाँ मोसों,
नेंक न समझें मो रे मन की,
मोहि जरूरत का समझन की,
उलटे पाँवनु लौटि चला जा।
तोरे मन में ....
तू नहिं सोयौ मैं नहिं सोई,
निकरै बोल न मन- मन रोई,
हूक उठें परि का करि पाऊँ,
किनसों जिय की बात बताऊँ,
सोनौ होय तो सोय जा आजा
तोरे मन में ....
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता©
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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