रविवार, 12 मई 2019

ग़ज़ल

नफ़रतों    के बीज  क्यों 
ये    बो       रहे     नेता।
बुरा   ही   देखने  के सब 
मुसाफ़िर  हो   रहे  नेता।।

सुअर  का   बाल   इनकी
आँख में रहता सदा से ही,
अपने   गुरूरों   में  निरंतर
खो          रहे        नेता।

सभी इंसान  को  घर की 
मुर्गियाँ  ही  समझते   हैं,
वतन   की   आबरू  को 
जहाँ   में   धो  रहे  नेता।

जातियों  धर्मों में  टुकड़े 
कर     दिया       भारत,
सिर्फ़  कुर्सी    के   लिए 
सब    रो   रहे       नेता। 

चूसना     हर   आम को
मक़सद   सभी   का   है,
हर राह  पर  ये  शूल  ही
अब    बो    रहे     नेता।

अपने    गले     हों   हार
फूलों  के  दिली   चाहत,
मुश्किलों   से      बेख़बर
सब    सो     रहे    नेता।

कान के कच्चे 'शुभम
खाते   महज़   मक्ख़न,
बिना धागे ही  सुई  को
पो         रहे        नेता।

💐शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🍎  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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