सरस्वती माँ शारदे,
दो ऐसी उर - शक्ति।
शब्द-साधना में निरत,
मति की हो अनुरक्ति।।
विमला, विश्वा, वैष्णवी,
रमा , परा हे मात!
शब्द -शब्द में प्राण हों,
स्वर गुंजित हों सात।।
श्रीप्रदा , माँ भारती,
कर वीणा झंकार।
तीन भुवन में शब्द को,
मिले रूप साकार।।
शतरूपा , वाणी , शिवा,
देवपूजिता देवि।
विद्यादात्री वरप्रदा,
रहूँ कमल - पद -सेवि।।
सुवासिनी ,वसुधा ,शुभा,
शुभदा , सौम्या , पीत।
त्रिगुणा ,कांता ,वैष्णवी,
'शुभम' न भूले नीत।।
संस्कार के शील से,
जीवन हो साकार।
सावित्री सुरपूजिता,
खुले कृपा तव द्वार।।
हंसवाहिनी हंस -सी,
विमल बुद्धि दें मात।
निर्मल श्वेत सुहास की,
महिमा जग-विख्यात।।
वंद्या , कामप्रदा सदा,
उर में करो निवास।
महाफला,ब्राह्मी विरुद-
की हो हृदय सुवास।।
महाभुजा , सुरवंदिता ,
सुधामूर्ति अविराम।
मन की हर शुभकामना-
की पूरक अभिराम।।
जन्म-जन्म में भक्ति का,
माता मिले प्रसाद।
काव्यसाधना में 'शुभम',
सदा निरत हो साध।।
💐 शुभमस्तु !
✍ रचयिता ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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