पहले जो मुमकिन न था
अब मुमकिन सब यार।
सच - सच बोले 'एक' ही,
कहे एक की चार।।
कहे एक की चार,
चार की करे चार सौ।
अतिशयोक्ति अवतार ,
न मिलना सौ - सौ बरसों।।
कोई नहला चले,
चलेंगे उस पर दहले।
नहीं धरा पर 'शुभम',
नहीं था युग में पहले।।1।
पहले जो मुमकिन न था
अब तो देख कमाल।
अब तक तो झेला बहुत,
आगे कौन हवाल!!
आगे कौन हवाल,
धार भी देख तेल की।
जापानी गति चलें,
तीव्रता बुलट रेल की।।
कहने को मुख दिया,
'शुभम' तू कह ले कह ले।
इतिहासों पर चढ़कर ,
मुमकिन सबसे पहले।।2।
पहले जो मुमकिन न था
लाया वही मसीह।
काला जादू डालकर ,
फेर रहा तसबीह।।
फेर रहा तसबीह,
मुग्ध मूर्छित हैं दर्शक,
लीप झूठ से सत्य,
बनाता है आकर्षक।।
चूसें लॉलीपॉप ,
एक दो में ही बहले!
मुमकिन है वह आज,
नहीं था मुमकिन पहले।।3।
पहले जो मुमकिन न था
समय - समय की बात।
ज्यों -ज्यों कलयुग बढ़ रहा,
त्यों - त्यों बढ़ती घात।।
त्यों - त्यों बढ़ती घात,
बढ़ा घनघोर अँधेरा।
हैकर युग है मित्र,
न होना अभी सवेरा।।
मिटा देश को चोर,
देखते स्वप्न रुपहले,
होना ही है 'शुभम,
हुआ जो कभी न पहले।।4।
पहले जो मुमकिन न था
लम्बी चोर - जमात।
लगी हुई सर्वत्र ही,
उन्हें दीखती जात।।
उन्हें दीखती जात,
जाति के मत ही दीखें।
जाय भाड़ में देश ,
मारते कीचड़ - पीकें।।
सहने को मजबूर आदमी,
कितना सहले ?
वही हो रहा 'शुभम ',
हुआ जो यहाँ न पहले।।5।
💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🦜 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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