मंगलवार, 7 मई 2019

शुभम दोहांजलि

अपनी-अपनी ढपलियाँ,
अपना -  अपना    राग।
सभी   सपेरे    व्यस्त  हैं,
बीन    सुन    रहे  नाग।।

भौंपू  से    आशा   नहीं,
अपना   एक   न   बोल।
जितना  फूँका   छेद  में,
बोला     वाणी    तोल।।

इन   अंधों   को  चाहिए,
नहीं    एक    भी    नैन।
भेड़ -चाल   में  मगन हैं,
मन   में   है   सुख  चैन।।

'अंधा   चाहे    नयन  दो',
हुई      कहावत      झूठ।
देखें    उनकी    दृष्टि  से,
जाएँ   अन्यथा     रूठ।।

उनकी  आँखों  देखना ,
सुनना   उनके     कान।
देह  धरे  नर   रूप  में,
चमचे    धीर    महान।।

चमचों   के  खंभे  लगे ,
नेता    खड़ा    बज़ार।
भाषण करता मंच पर,
भरे   आम  के जार ।।

लुटा रहे  शिक्षक  प्रवर ,
कर  लो    बच्चो   लूट।
लूट न  पाएँ  अंक  जो,
भाग्य   जाएँगे    फूट।।

कौन  ज्ञान  को देखता ,
सौ   में   सौ   हों  अंक।
सेल्फ़ी सीना  तान लो,
मन में   रहो  निःशंक।।

शिक्षा  का बेड़ा  गरक,
शिक्षक  करते   आज।
बिना  पढ़ें  दें  अंक  वे,
शिक्षा   के    सरताज़।।

होती  जब  प्रतियोगिता,
सौ    से   हटता     एक ।
शून्य दीखता ज्ञान निज ,
होता    लुप्त     विवेक।।

खुलती  गठरी  ज्ञान की,
घुसे     परीक्षा  -   हाल।
प्रश्नपत्र    को    देखकर ,
लगा     सामने    काल।।

💐 शुभमस्तु !
🌳 रचयिता ©
👮 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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