आई गरमी ख़ुशी मनाएँ।
नानी -नाना के घर जाएँ।।
बंद हुए स्कूल हमारे।
चलो घूमते नदी किनारे।।
शीतल निर्मल बहता पानी।
नदिया है पानी की दानी।।
बैठ किनारे ख़ूब नहाएँ।
आई गरमी ....
देखो वहाँ बाग है सुंदर।
खिले फ़ूल क्यारी के अंदर।।
महक रही सुगंध से क्यारी।
रंग -बिरंगी तितली सारी।।
माली से बचकर घुस जाएँ।
आई गरमी ......
नानी कहती वहाँ न जाना।
तालाबों में नहीं नहाना।।
नाना बोले घर में खेलो।
पढ़ो किताबें कैरम ले लो।।
तेज़ धूप से तब बच पाएँ।
आई गरमी.....
आम दशहरी ख़रबूज़े हैं।
लाल मधुर ये तरबूजे हैं।।
खीरा ककड़ी प्यास बुझाते।
रस वाले अंगूर सुहाते।।
कुल्फ़ी आइसक्रीम भी खाएँ।
आई गरमी ....
बहता तन से बहुत पसीना।
डंसते मच्छर दूभर जीना।।
पीओ खूब नित नीबू पानी।
बात बड़ों की हमने मानी।।
पढ़ें किताबें भूल न जाएँ।
आई गरमी....
रखें सफ़ाई अंदर बाहर।
नहीं प्रदूषण होगा घर पर।।
चिड़ियों को दें दाना -पानी।
कहती मेरी दादी - नानी।।
कम पानी से काम चलाएँ।
आई गरमी.....
पेड़ लताओं को दें पानी।
हरी-भरी हो प्रकृति सुहानी।।
ज़्यादा पौधे ज़्यादा वर्षा।
'शुभम'धरा का कण कण हर्षा।
हर ऋतु का आनन्द उठाएँ।
आई गरमी ....
💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम '
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