शुक्रवार, 17 मई 2019

अहम की कार [अतुकान्तिका]

उनके अहम की भी
अपनी एक कार है,
जिस पर रात-दिन
वह सवार है,
सौ-सौ झूठ बोलने का
उसको अधिकार है।

कहते हैं :झूठ के
पाँव  नहीं होते,
भूत प्रेत शैतान चुड़ैलों  के
पाँव जमीं नहीं छूते,
कहते यह भी हैं:
झूठों के  कहीं 
गाँव नहीं होते,
क्योंकि अधिकांश झूठे
शहर में जा बसे होते,
पाँव न भी हों 
तो क्या है!
 वह तो अहम की 
कार में चलता है।
और सत्य निरंन्तर
पाँव -पाँव चलता है,
फफोले भरा  नग्न पाँव
बिना किसी पद त्राण
हृदय की टीस बनता है।

सच अपने सच को
सिद्ध नहीं कर पाता,
सुबूत चाहिए
साक्षी भी,
सच को सच
जताने के लिए!
अपना पता अभिज्ञान
सच -सच बताने के लिए,!
उसने अपना आधार कार्ड
नहीं बनवाया,
इसलिए आज 
बहुत रिरिआया,
पर उसका सच
काम नहीं आया!

औऱ उधर झूठ और झूठा
जिसने हर आम को लूटा
स्वतः प्रमाण है,
 बिना किसी आधार
उसी का त्राण है।

पड़ गए हैं 
सत्य के  पाँवों में छाले,
जान भी बचाने के
पड़ रहे हैं लाले,
सिल गई है जुबां
पड़ गए हैं ताले!
झूठ के मुस्टंडे 
सदा मुस्कराने वाले!

सत्य बेईमानों का
आहार हो गया,
झूठ सियासतदाओं का
गलहार हो गया ,
इसीलिए इस देश का
बंटाढार हो हो गया!

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🙉 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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