कुहू -कुहू नर कोयल बोला।
कानों में अमृत-रस घोला।।
काले पर तन चोंच निराली।
कूद रहा रसाल की डाली।।
मन भोला वाणी में रस है।
सुनकर मन होता बेवश है।।
फूटा मधु कलरव का गोला।
कुहू -कुहू नर ....
बुला रहा कोयलिया आओ।
मेरे सँग - सँग गाना गाओ।।
बोली :' मैं कैसे सँग गाऊँ।
तुम पर रीझी मैं शरमाऊँ।।
तुमने स्रोत मधुर रस खोला।'
कुहू -कुहू नर....
पिड़कुलिया गौरेया गाती।
झेंपुल प्रातः हमें जगाती।।
सबका कलरव न्यारा-न्यारा।
पर कोकिल का सबसे प्यारा।
सबने उसे तुला पर तोला।
कुहू -कुहू नर....
कहते लोग बोलती मादा ।
'शुभम'कर रहा इतना वादा।।
बुला रहा प्यारी पत्नी को।
डाल मधुर रस की धारी को।।
ऋतु वसंत है मौसम भोला।
कुहू-कुहू नर ....
💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें