रविवार, 19 मई 2019

कुहू -कुहू [बालगीत]

कुहू -कुहू नर कोयल बोला।
कानों में अमृत-रस घोला।।

काले पर तन चोंच निराली।
कूद रहा रसाल की डाली।।
मन भोला वाणी में रस है।
सुनकर मन होता बेवश है।।
फूटा मधु कलरव का गोला।
कुहू -कुहू  नर ....

बुला रहा कोयलिया  आओ।
मेरे सँग -  सँग गाना गाओ।।
बोली :' मैं कैसे  सँग  गाऊँ।
तुम पर रीझी मैं  शरमाऊँ।।
तुमने स्रोत मधुर रस खोला।'
कुहू -कुहू  नर....

पिड़कुलिया   गौरेया  गाती।
झेंपुल  प्रातः  हमें   जगाती।।
सबका कलरव न्यारा-न्यारा।
पर कोकिल का सबसे प्यारा।
सबने  उसे  तुला  पर  तोला।
कुहू -कुहू नर....

कहते    लोग  बोलती  मादा ।
'शुभम'कर रहा इतना वादा।।
बुला रहा  प्यारी  पत्नी  को।
डाल मधुर रस की धारी को।।
ऋतु वसंत   है मौसम भोला।
कुहू-कुहू  नर ....

💐 शुभमस्तु!
✍रचयिता ©
🌳  डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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