शनिवार, 11 मई 2019

खजूर के पेड़ पर [अतुकान्तिका]

आइए !
आइए!!
आइए !!!
अपने नौनिहालों का
हमारी संस्था में
प्रवेश करवाइए,
समस्त सुविधाओं से सुसज्जित,
ए सी और गार्डन से
सुगंधित,
खेल हैं ,खिलौने हैं , झूले हैं
अरे ! आप कहाँ भूले हैं?
यों बाज़ार के चक्कर
क्या लगाना !
बच्चे की ज़रूरत का
हर सामान
विद्यालय से मँगाना,
किताबें हैं ,कापियां हैं,
चोकलेट हैं ,टॉफियाँ हैं,
रबर , पेंसिल ,कटर है,
यूनिफॉर्म सिली हुई
बच्चे के नाप की,
और हाँ, जूते भी हैं यहाँ,
टाई ,बेल्ट ,डायरी  की
पूछना ही क्या!
घर से वैन उठाएगी
घर तक पहुँचाकर आएगी।

बच्चे से पहले
माँ बाप का होगा इंटरव्यू,
आपका पढ़ा -लिखा
होना है अनिवार्य,
अन्यथा कौन करवाएगा
बच्चे का गृहकार्य ।

-' तो क्या स्कूल में
पढ़ाई नहीं होगी।'
-अभिभावक सकुचाया
और साहस कर पूछा-'
उधर से जवाब आया
सूखा तल्ख़ और छूछा-
'जब आप ही पढ़े नहीं
तो बच्चे को क्या पढ़ाएंगे?
यहाँ हम बस बच्चे का
मन बहलायेंगे ,'
'-फिर बच्चे को
विद्यालय क्यों भेजना है?
क्या सिर्फ़ यहाँ झूला झूलना
और कूदना खेलना है?
वह तो अपने घर पर
भी खेल कूद लेगा !
क्या मनोरंजन -घर
के लिए कोई
मोटी फीस देगा?'

'अरे ! तीन हजार की
किताबें किसलिए हैं!
और हम जो बैठे हुए
ही इसलिए हैं,
न पढ़ा सकों तो
हमारे यहाँ योग्य ट्यूटर हैं,
आपके घर तक सेवा हेतु
सभी सदा तत्पर हैं!'

शिक्षा कहाँ है
वहाँ खजूर के पेड़ पर
अटकी है!
गिरी थी आसमान से
मनोरंजन -घरों में अटकी है।
शिक्षा नहीं है आज सेवा,
महज़ एक बड़ा धंधा है,
विद्या की अर्थी पर
विद्यार्थी का कंधा है,
शोषण का पर्याय
आदमी धन का अंधा है!
कुनैन सत्य सहन नहीं
जिसे आज का यह बंदा है!
मजबूरी है अभिभावक की
उसे बच्चे पढ़वाने हैं ,
योग्यता मिले या न मिले
सौ फ़ीसद नम्बर दिलवाने हैं!
ले लेकर कर्ज़े अपने
लहू माँस नुचवाने हैं!

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता ©
👮 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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