गुरुवार, 30 मई 2019

जड़ [अतुकान्तिका]

   धरती माँ के गर्भ से
फूटा अँखुआ 
उषा की किरण संग
खोलता आँखें
देखता नए -नए रंग,
उधर नीचे 
 घोर तम  में
साधने के क्रम में,
पोषती जड़
धरती की शरण,
किसने देखा 
जड़ का रूपाकार
वर्ण ,आचरण।
बस बढ़ते हुए 
नन्हे  अँखुये का 
बनते हुए पौधे का
करती अनवरत पोषण।

देती हुई मजबूती
विस्तारित करती निज तंत्र,
भोजन पानी का 
अहर्निश गाती
पावन मौन मंत्र।

जड़ तो जड़ है,
उसकी अपनी ही
 अड़ है,
कर्तव्य -पथ पर 
सुदृढ़ है,
जड़ी है 
भूमिका में अपनी
थामे हुए है 
माँ अवनी
उसकी अँगुली।

पादप ही देखा सबने
जड़ जड़ी है
अड़ी है 
तपने! तपने !! तपने !!!
पर वह 
मात्र नहीं है जड़
वही है असली तप प्रण,
व्यर्थ नहीं है
 उसका कण- कण,
न कभी अपनी ही चिंता
न बद आचरण।

उपेक्षित क्यों रहे
मौन शान्त जड़,
पादप के आभार से
सराबोर जिसका कण-कण,
गा रहे हैं जिसके गुण,
पल्लव ,  तने ,शाखाएँ ,
फूल फलों के गण।

जड़ ही तो मूल
आधार  सशक्त,
आजीवन ऋणी 
पादप है भक्त,
तम ने जिसको पाला,
तप ने साँचे में  ढाला,
वही तो जड़ है, 
स्व भू-साधना में दृढ़ है।

💐शुभमस्तु !
✍रचयिता©
🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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